Menu
blogid : 17681 postid : 834425

मेरी भी घर वापसी करा दो

bat-kahi
bat-kahi
  • 38 Posts
  • 25 Comments

gharwapsi
साधो, समग्र आर्यवर्त में सनातन धर्म के स्वघोषित ठेकेदारों तक मेरी यह इच्छा भी पहुंचा दो कि मैं भी घर वापसी का अभिलाषी हूँ। जब से इन ठेकेदारों ने यह नेक अभियान आरम्भ किया है मेरी भी इच्छा जागृत हो गयी है कि मैं भी अपने पीढ़ियों पुराने घर का पता लगाऊं। मेरा वर्तमान घर तो इस्लाम में है लेकिन मैं अपना शिजरा खोजने की कोशिश करता हूँ तो मेरे दादा के पिता से आगे कुछ पता नहीं चलता कि उनसे पहले की पीढ़ियां किस घर में वास करती थीं लेकिन भागवत बाबू कहते हैं सभी भारतवासियों का डी. एन. ए. एक ही है और सभी इसी भूमि के वासी हैं तो मुझे भी विश्वास हो चला है कि मेरे पुरखों का वास भी हिंदुत्व के ही किसी कोने में रहा होगा।
मैं पीछे मुड़ कर देखता हूँ तो सदियों तक फैली गरीबी, भुखमरी, उत्पीड़न, अत्याचार, शोषण से जूझता वह समाज नज़र आता है जिनके लिए अपने से ऊंची जाति वालों से आँख मिला कर बात करना भी पाप था, जो गावों-बस्तियों से बाहर आरक्षित स्थानों पर रहते थे, गावं के कुँए से पानी नहीं ले सकते थे, ऊंची जाति वालों की ज़मीनों से गुज़ारना मना था, मंदिरों में जिनका प्रवेश वर्जित था, जिनकी महिलाएं ऊपरी तन ढकने का अधिकार नहीं रखती थीं, जिन्हें द्रोणाचार्यों के आश्रमों में शिक्षा पाने का अधिकार नहीं था, जिनके लिए नगर में चलते वक़्त पंक्ति-बद्ध होने और बांस की डंडियों पर लगी घंटिया बजाना अनिवार्य था कि ऊंची जाति के लोग उनकी छाया से भी बच सकें, जिनके लिए मनुस्मृति में कथन है कि पवित्र श्लोक सुनने की हिम्मत करने वाले नीची जाति के लोगों के कानों में शीशा पिघला कर डाल देना चाहिये। वे पीड़ित शोषित, अपनी सामाजिक स्थिति से असंतुष्ट-असहमत लोग ही तो थे जिन्होंने घर परिवर्तन किया था — कभी किसी लालच में कभी किसी मज़बूरी में तो कभी डाक्टर आंबेडकर की तरह अपने साथ होने वाले अस्वीकार्य व्यवहार के कारण। ऊंची जाति के लोगों ने कब घर परिवर्तन किये थे। मुझे यकीन है की मेरे पुरखे भी इन्हीं शोषित, पीड़ित और वंचित लोगों में से रहे होंगे।
अब कुछ नेक महात्माओं ने उन सभी घर छोड़ने वाले पीड़ितों की घर वापसी का बीड़ा उठाया है तो मुझे लगता है कि मैं भी अपनी घर वापसी की संभावनाएं टटोल ही लूँ। मेरा उन आज़म खानों, मौलानाओं से मतभेद है जो इस घर वापसी का विरोध करते हैं। घर वापसी में भला क्या बुराई है पर वापसी करने से पहले हमें पता भी तो होना चाहिए की घर अगर वैसा ही है जैसा हमारे पुरखे छोड़ के आये थे तो वापसी का औचित्य ही क्या है ? आज भी सिर्फ एक साल में दलितों पर हमलों के १३००० मामले दर्ज हो जाते हैं।उनकी बेटियों महिलाओं से छेड़छाड़, बलात्कार के किस्से आज भी आम हैं लेकिन ऊंची जाति की कोई लड़की अगर किसी दलित के साथ प्यार कर ले, भाग जाये, शादी कर ले तो उनकी बस्तियां गावं फूँक दिए जाते हैं, आत्मसम्मान के नाम पर प्यार या शादी करने वालों को मौत के घात उतार दिया जाता है। आज भी उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडु, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना आदि में उनकी अलग बस्तियां, अलग गावं मिल जायेंगे। आज भी उनके घर खाना खाना, पानी पीना ऊंची जाति वालों के लिए एक अघोषित वर्जना के दायरे में आता है। एक ऐसे घर में जहाँ ऊँच नीच की बू आती हो, जहाँ भेदभाव एक स्वीकार्य व्यवहार है — वापसी से पूर्व घर वापसी के अभियान चलाने वालों से कुछ स्पष्टीकरण लेने ज़रूरी हैं।
हिंदुत्व के स्वघोषित सरंक्षकों से अनुरोध है कि मेरी इस दुविधा को दूर करें कि पुराने घर में वापसी पर वे मुझे किस गोत्र में फिट करेंगे ? किस जाति का सर्टिफिकेट मुझे दिया जायेगा ? साफ़ शब्दों में कहूँ तो घर वापसी और मेरे शुद्धिकरण के उपरान्त वे छुआछूत और वर्णभेद आधारित सामाजिक व्यवस्था में मुझे कौन सी जातिगत पहचान देंगे? अभी तो मैं जिस घर में हूँ वहां ‘अंसारी’ के तौर पर मेरे माथे पर एक जातिगत लेबल लगा हुआ है, घर वापसी के बाद जब यह लेबल हटेगा तो वे कौन सा लेबल लगाएंगे? मैं अपने नाम के साथ सोनकर, वाल्मीकि, भारती, राजवंशी इत्यादि ही लगा सकूंगा या ठाकुर, पांडे, मिश्रा, चतुर्वेदी, शर्मा, शुक्ला भी लगा सकने की अनुमति मुझे दी जाएगी? मेरे वर्तमान घर में तो कोई भेदभाव नहीं, सभी हमक़ौम हमनिवाला कहलाते हैं, एक मस्जिद में जाते हैं, एक सफ में खड़े होकर इबादत करते हैं — क्या मेरे पुराने घर में मुझे यह व्यवस्था मिलेगी? कल को मेरे बच्चे बड़े होंगे — क्या कोई तिवारी, दूबे, पाण्डेय उन्हें अपनी बेटी ब्याहेगा?
अगर मेरे सवालों और दुविधाओं के लिए वे सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं तो मेरा उनसे विनम्र निवेदन है कि नए लोगों की घर वापसी से पूर्व घर में पहले से मौजूद लोगों के बीच वो चेतना जागृत करें जो कांग्रेसमुक्त भारत की कल्पना से इतर हकीकत के धरातल पर एक छुआछूत मुक्त, भेदभाव मुक्त, उत्पीड़न मुक्त एक सहिंष्णु, मानवीय और न्यायसंगत समाज की स्थापना करें — घर से गए लोगों का क्या है, जब सब ठीक हो जायेगा तो वे खुद ही वापस आ जायेंगे।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh