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दो ध्रुवीय होता आम चुनाव

bat-kahi
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चुनाव का मिजाज़ अजीब हो चला है, सिर्फ एक शख्स ने इसे अपने रंग में ऐसे रंग डाला है कि हर हर मोदी-घर घर मोदी … पक्ष में मोदी तो विपक्ष में मोदी, भाजपा में मोदी तो कांग्रेस, सपा, बसपा, राजद, जद यू में मोदी … और यह तो सर्व विदित है कि जब क्रिया में इतने ढेर सारे और लगभग सभी विपक्षी नेता सिर्फ एक शख्स को टार्गेट करके बयान बहादुरी दिखाएंगे तो प्रतिक्रियात्मक रूप से जनसहनुभूति उसी शख्स को मिलेगी जैसे श्रीमान मोदी को मिल रही है।
इस सोलहवीं लोकसभा के आम चुनाव में और कुछ बदला हो न बदला हो लेकिन मोदी साहब की मेहरबानी से एक चीज़ तो ज़रूर बदली है कि चुनाव सिर्फ दो ध्रुवों पर पहुँच कर अटक गया है। स्थानीय मुद्दे, समस्याएं, विकास, भ्रष्टाचार, सुशासन, कुशासन, प्रत्याशियों की अच्छी बुरी छवि — जैसे हर चीज़ इस बार गौण हो कर रह गयी है या लगभग नगण्य हो गयी है।
देश के करोड़ों मतदाताओं का एक बड़ा भाग सिर्फ दो तरह की मानसिकता में सिमट कर रह गया लगता है कि आप या तो मोदी विरोधी हैं या मोदी समर्थक। बीच में कोई विचारधारा नहीं और इस स्थिति में पहुँचने पर लोगों का वोटिंग पैटर्न अजीबोगरीब हो चला है। देश के ज्यादातर लोकसभा क्षेत्रों में मतदाता इसी आधार पर अजीब तरह से बँट गए हैं।
मान लीजिये किसी प्रत्याशी को वह पसंद करते हैं और उसे इस बार जिताना चाहते थे लेकिन चूँकि अब वह बीजेपी से खड़ा हो गया है तो उसे हराने के लिए दूसरे मज़बूत प्रत्याशी को समर्थन कर रहे हैं।कहीं किसी मौजूदा भाजपा सांसद से लोग अब तक बुरी तरह चिढ़े हुए थे और उसे हराने की इच्छा लिए चुनाव का इंतज़ार कर रहे थे लेकिन अब हाल यह है कि मोदी को जिताने के चक्कर में मन मार कर फिर उसी को वोट कर रहे हैं तो किसी क्षेत्र के मौजूदा सपा, बसपा, कांग्रेस सांसद से लोग अब तक तो बुरी तरह खफा थे और आम सूरत में उसे वोट देने का इरादा बिलकुल नहीं रखते थे लेकिन अब मोदी का विजय रथ रोकने के लिए फिर उसी को वोट करेंगे।
दूसरे दलों से आये बाहरी भाजपा उम्मीदवार को उस इलाके के लोग जानते नहीं, पसंद नहीं करते, उम्मीदवार का खुल कर विरोध भी किया लेकिन मोदी समर्थन में अब उसी प्रत्याशी को जिताने में लग गए हैं। ऐसे ही दूसरे दलों में पाला बदल के आये बाहरी और अप्रिय उम्मीदवारों का स्थानीय कार्यकर्ताओं-समर्थकों ने विरोध किया, नारेबाजी, धरने किये लेकिन अब अगर वही प्रत्याशी भाजपा उम्मीदवार को कड़ी टक्कर देता दिख रहा है तो यही सब नाराज़ लोग मोदी की राह रोकने के चक्कर में उसी के पीछे एकजुट हो रहे हैं। अब ज्यादातर क्षेत्रों, खासकर हिंदी पट्टी में में दो ही मुद्दे सिरमौर हैं कि या तो मोदी को हराना है या फिर मोदी को जिताना है।
अब ऐसे कठिन समय में नेता, या खुद नरेंद्र मोदी ही क्यों न विकास, भ्रष्टाचार, सुशासन की कितनी ही बात क्यों न कर लें, लेकिन कहीं कोई इन मुद्दों को नहीं देख रहा। मुद्दे तो मुद्दे अब तो कोई सपा, बसपा, रालोद, राजद, जद यू, या आप को ही नहीं देख रहा। इन चुनावों में मोदी विरोधी मतदाताओं के लिए कोई भी दाल अस्वीकार्य नहीं — कोई भी प्रत्याशी अस्वीकार्य नहीं।
मेरा दो लोकसभा क्षेत्रों से सम्बन्ध है, एक तो मेरा गृह नगर सीतापुर, जहाँ जो भाजपा उम्मीदवार हैं वह ९८ से २००९ तक बसपा के पाले से सांसद रह चुके हैं और एक निष्क्रिय और अप्रिय नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं, वह एन चुनाव के वक़्त पाला बदल कर भाजपा पहुंचे होने की वजह से न कार्यकर्ताओं को स्वीकार्य थे न समर्थकों को, उनके खिलाफ खूब विरोध प्रदर्शन भी हुआ लेकिन अब मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाने का मिशन सामने देख सब उन्ही के पीछे एकजुट हो गए हैं, जबकि दूसरी तरफ वर्तमान बसपा सांसद जिनके खिलाफ आक्रोश कम नहीं था — मुस्लिम होने के बावजूद मुस्लिम वर्ग ही उनसे खफा और हराने का संकल्प लिए बैठा था — अब मोदी की राह रोकने के लिए न चाहते हुए भी सारे मोदी विरोधी उन्ही को वोट देने को तैयार दिखते हैं।
ऐसे ही मेरी कर्मस्थली लखनऊ में भी यही हालत दिखती है जहाँ भाजपा समर्थक लाल जी टंडन के समर्थन में थे और जबरदस्ती थोपे गए राजनाथ सिंह को अपनी पहली पसंद नहीं मानते — लेकिन मोदी समर्थन के नाम पर सब अपना असंतोष, असहमति, विरोध भूल कर राजनाथ सिंह को जिताने में लगे दिखाई देते हैं, तो विरोधी सोच के मतदाताओं का बड़ा वर्ग रीता बहुगुणा जोशी के पीछे सिमटता नज़र आता है। उनमे ज्यादातर को रीता बहुगुणा जोशी की जीत से मतलब नहीं, राजनाथ सिंह की हार से मतलब है ताकि मोदी रथ की गति में स्पीड ब्रेकर जैसा कुछ अड़ सके।

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