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आज कल देश में दो बड़े बाबा काले धन को लेकर चर्चा में छाये रहते हैं। एक रामदेव नाम के योगी बाबा हैं तो दूसरे नरेंद्र मोदी नाम के राजनीतिक बाबा — एक योग की मुद्राओं के साथ तो दूसरे चाय की चुस्कियों के साथ देश के ढेरों मंदबुद्धि लोगों समझाते हैं कि विदेश में कितना काला धन कूड़े के ढेर पर जहाँ तहां बिखरा पड़ा है लेकिन सरकार इसे उठा के नहीं लाती। हम सरकार में आये तो सबसे पहले इसे उठा के लायेंगे और देश का कल्याण कर देंगे। बेचारे भोले भाले आशा वादी समर्थक ये पूछने में मासूम बच्चो को भी मात देते हैं कि यह काला धन देश में लाकर कहाँ कहाँ लगाया जायेगा जैसे मोदी प्रधानमंत्री बने नहीं के ये काला धन देश वापस आया नहीं।
इस देश में लोगों की याददाश्त बड़ी कमज़ोर होती है — वो भूल जाते हैं कि दस साल पहले यही भाजपा केंद्र में ६ साल तक सत्तासीन रही थी तब ये काला धन उठाने में उसके हाथ किसने बांध दिए थे जो आज उसे कचरे के ढेर पे लावारिस पड़ा दिखायी दे रहा है। यह दोनों बाबा अपने समर्थकों को ठीक से ये बताना भी पसंद नहीं करते कि आखिर ये काला धन है क्या बला ?
यह उन ढेरों भारतीयों की वो अकूत दौलत है जिसे वैध – अवैध तरीके से कमाया गया लेकिन जिस पर कोई टैक्स न चुका कर उन्होंने इसे विदेशो और ख़ास कर स्विस बैंकों में जमा कर दिया। यह अपराध है — यह दूसरा विषय है लेकिन क्या कोई मोदी उन बैंकों को बन्दूक दिखा कर उनके खाताधारकों का पैसा निकालने पर मजबूर कर सकता है ? बैंकिंग व्यवस्था लोगों के जमा पैसों पर ही चलती है और इसका एक बड़ा हिस्सा ब्याज पर क़र्ज़ के रूप में बाज़ार में निवेश होता है जिससे काफी कुछ देश की अर्थ-व्यवस्था भी जुडी होती है।किसी भी देश के दबाव डालने पर क्या स्विट्ज़रलैंड कि सरकार अपनी नीति बदल देगी कि उसके बैंकों में जमा धन का बड़ा हिस्सा यूं निकल जाए कि उसकी अर्थ-व्यवस्था ही पटरी से उतर जाए और क्या स्विस बैंक ये गवारा करेंगे कि वोह यूं धन निकासी का खतरा मोल लेकर खुद को संकट-ग्रस्त कर लें। अपने खता-धारकों के प्रति हर बैंक की ये ज़िम्मेदारी होती है कि न सिर्फ वो उनका धन सुरक्षित रखे बल्कि उसकी गोपनीयता भी बनाये रखे। क्या बैंक अपने नियम मोदी या रामदेव के कहने से तोड़ देंगे ?
आखिर वह पैसा भले गैरकानूनी ढंग से जमा किया गया हो लेकिन उस पर ये बंदिश कही से लागू नहीं होती के जिसने जमा किया है वह निकाल नहीं सकता और ये पैसा जिन लोगों का है अगर उन्हें सरकार से बचा कर विदेश में पैसा जमा करने की अकल थी तो ये अकल भी ज़रूर होगी कि वह अपने पैसों पे खतरा आता देखेंगे तो उसे निकालना शुरू कर देंगे। भले ये पैसा भारत न लाया जा सकता हो लेकिन दुनिया के २३३-३४ देशों में १०० से ज्यादा ऐसे देश हैं जो अपने यहाँ आने वाले पैसे या निवेश का स्वागत खुले दिल और खुली नीतियों से करते हैं। स्विस बैंकों के खाताधारक अपने पैसों को खतरे में पड़ते देख ऐसे ही देशों में निवेश के रूप में खपाना शुरू कर देंगे तो भारत सरकार क्या कर लेगी और यकीन कीजिये , मालदीब जैसे देशों में ऐसा निवेश शुरू भी हो चूका है।
इस मामले में भारत सरकार इससे ज्यादा कुछ नहीं कर सकती कि किसी तरह स्विस सरकार से कोई समझौता करके उन सारे भारतीयों के बारे में जान पाये जिनके ऐसे खाते हैं और फिर उन पर दबाव बना कर धन वापसी कि कोशिश कि जाए या वह पैसा भारत में ही निवेश कराया जाए , और पिछली सारी सरकारों ने (जिसमे एन डी ए की सरकार भी शामिल है) लगातार इसी चीज़ की कोशिश की है और कई खाताधारकों के बारे में जान्ने में सफलता भी पायी है लेकिन ऐसी प्रयासों के लिए गोपनीयता भी ज़रूरी होती है जिससे खाताधारकों के बीच अनायश्यक हड़कम्प न मचे पर चाय की चुस्की हो या योग की मुद्रा, अब चुनावी मौसम में राजनीतिक लाभ के लिए यही अपरिपक्वता लगातार दोनों बाबाओं की तरफ से प्रदर्शित की जा रही है।
पिछले एक साल से जिस तरह बाबा रामदेव योग को किनारे रख कर इस मामले में शोर मचा रहे हैं और अब प्रधानमंत्री बन्ने की ख्वाहिश में नरेंद्र मोदी जिस तरह क्षणिक राजनीतिक लाभ के चक्कर में इस मसले को चर्चा में ला रहे हैं और अब जिस तरह काले धन को लेकर हो-हल्ला शुरू हो गया है उसका नकारात्मक असर भी काले धन के ताज़ा आकड़ों से साफ महसूस किया जा सकता है जिसमे साल से लगातार निकासी शुरू हो चुकी है। इस राजनीतिक रोटियां सेकने की कवायद में ये निकासी यूँ ही जारी रहेगी और जब तक दिल्ली में नई सरकार बनेगी और अगर वो भाजपा की हुई तो जब तक वो वह इस मामले में कुछ कर पाने की हालत में हो भी पायेगी तो तब तक जिस काले धन का लोगों का सपना दिखाया जा रहा है उसका बड़ा हिस्सा निकाला जा चुका होगा और वह बस बाबा जी का ठुल्लू ही बचेगा और इस तरह देश का जो नुक्सान होगा उसकी ज़िम्मेदारी किस पर डाली जायेगी ये न बाबा रामदेव बताएँगे न बाबा नरेंद्र मोदी।
ये कुछ ऐसा है कि आप अपना वो पैसा जिसे भले आपने किसी गलत ज़रिये से कमाया हो लेकिन गाव के ज़मीदार , प्रधान या और कोई ऐसी शख्सियत से बचने के लिए काली पहाड़ी पे किसी गुफा में छुपा आये हैं , अब वो शख्सियत इस बारे में जान जाए तो किसी तरह आप को बहला फुसला कर , कोई दबाव बना कर वो पैसा वापस लाने की कोशिश करे जिसे गाव में खर्च किया जा सके तो शायद आप वो पैसा खुद ला दें , लेकिन अगर कुछ लोग हो -हल्ला करना शुरू कर दें के आपका पैसा काली पहाड़ी पर फला गुफा में रखा है और वो प्रधान बनते ही ये पैसा उठा लायेंगे तो आप क्या करेंगे ? उनके प्रधान बन्ने का इंतज़ार या अपने पैसे पे खतरा आता देख उसे वह से उठा कर कही और खपा देंगे के किसी को कुछ न मिले , अगर ऐसा होता है तो उन गाव वालो के लिए जिनके ये काम आना था , ये फायदे का सौदा है या नुक्सान का और नुक्सान का तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा ?
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